योग की शक्ति से बेअसर होगा बुढ़ापे का असर

योग की शक्ति से बेअसर होगा बुढ़ापे का असर

यह निर्विवाद है कि जो आया है सो जाएगा। पर बुढापा शारीरिक या मानसिक रूप से कष्टप्रद न हो। लोग भले कम जिएं। पर जिंदा लाश बनकर जीने की स्थिति न बने। ये ऐसी बातें हैं, जिन पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत महसूस की जाती रही है। अच्छा है कि चीजे सकारात्मक दिशा में बदल रही हैं। योग और अध्यात्म की हमारी प्राचीन विरासत को विज्ञान की कसौटी पर कसा जा रहा है। उसके नतीजों से जनता को अवगत कराया जा रहा है। ताकि वृद्धजनों का जीवन सुखमय बन सके। अब तक के अध्ययनों के आधार पर दावे के साथ कहा जा सकता है कि योगमय जीवन हो तो मानसिक अवसाद से मुक्ति मिलेगी। बुढ़ापा देर से दस्तक देगा और चलते-फिरते प्राण निकल जाने का अरमान भी पूरा हो जाएगा।

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफोर्निया के सैन डिएगो स्कूल और नेशनल स्टीच्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज (निमहांस) का अध्ययन ताज-ताजा है। इन अध्ययनों के मुताबिक कुछ खास तरह के योगाभ्यास से शरीर के बायोलॉजिकल बदलाव को धीमा कर देता है। नतीजतन, शरीर और मन पर बढती उम्र के कुप्रभावों बहुत हद तक मुक्ति मिल जाती है। वैसे प्राचीन योग-शास्त्र के जानकारों के लिए यह चौंकाने वाली बात नहीं है। योग-शास्त्र की मान्यता पुरानी है कि बुढापे की क्रिया को रोकने के लिए क्षय होने वाली कोशिका के बदले नई कोशिका उत्पन्न की जा सकती है। किसी मामले में ऐसा संभव न हो सका तो उसकी मरम्मत तो हो ही सकती है। तभी आधुनिक यौगिक व तांत्रिक पुनर्जागरण के प्रेरणास्रोत, विश्व प्रसिद्ध बिहार योग विद्यालय के संस्थापक और इस शताब्दी के महानतम संत परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती कहा करते थे – “व्यक्ति का योगमय जीवन हो तो सामान्य प्रत्याशित आयु सीम डेढ़ सौ वर्षों की है।“

आइए, पहले हम जानते हैं कि हमारे शरीर में बायोलॉजिक परिर्वतन कब और कैसे होता है। चिकित्सकीय शोध के मुताबिक हमारे शरीर का डीऑक्सीराइबोज न्यूक्लिक अम्ल यानी डीएनए के भीतर एक विशेष प्रकार का जैविक तत्व होता है, जिसे टेलीमीयर कहते हैं। यह जितनी तेजी से छोटा होगा, उतनी तेजी से बुढापा आएगी। दरअसल, टेलीमीयर सभी प्राणियों की कोशिकाओं में पाया जाने वाला तंतु रूपी पिंड क्रोमोज़ोम का रक्षा कवच है। डीएनए से बना क्रोमोजोम ही सभी आनुवांशिक गुणों को निर्धारित व संचारित करने का काम करता है। इसके सिरों पर मौजूद टेलीमीयर जैविक तत्वों की सुरक्षा करता है और कोशिकाओं के तेज़ी से बूढ़ा होने से बचाता है।

टेलीमीयर के सिकुड़ने या छोटा होने से बुढ़ापा आने के साथ ही हृदय रोग,  मधुमेह और कैंसर जैसी घातक बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। एम्स के ऐनाटॉमी डिपार्टमेंट की डॉक्टर रीमा दादा के मुताबिक उनके अध्ययन में 96 लोगों को शामिल किया गया था। उन सभी के डीएन डैमेज मार्कर, स्ट्रेस मार्कर, एंटीबॉक्सीडेंट क्षमता और टेलीमीयर मार्कर देखे गए। फिर नियमित रूप से तीन महीनों तक योग कराया गया। इसके बाद उनकी जांच की गई। पता चला कि उम्र बढ़ने के सभी कारकों पर लगाम लग चुका था। डॉ रीमा दादा के मुताबिक, डीएनए को डैमेज करने में स्ट्रेस एक महत्वपूर्ण कारण होता है। योग करने से स्ट्रेस के लेवल में कमी आती है। लिहाजा योगभ्यासों के कारण डीएनए डैमेज करने वाले मार्कर कम हो गए। वहीं, टेलीमीयर की लंबाई बढ़ गई। बीडीएनएफ भी बढ़ गया, इससे सोचने-समझने की क्षमता बढ़ गई। ब्लड प्रेशर नियंत्रण में आ गया और भूलने की बीमारी बेहद कम कई।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफोर्निया, सैन डिएगो स्कूल में शोध की अगुआई करने वाले डॉक्टर अलाद्दीन शादयाब कहते हैं, "हमने शोध में पाया कि वैसी महिलाएं जो लंबे समय तक बैठी तो रहती हैं, लेकिन नियमित कम से कम 30 मिनट की कसरत करती हैं उनका टेलोमेर छोटा नहीं था।" यह शोध अमरीकन जर्नल ऑफ़ एपिडेमियोलॉजी में छपा है। बंगलुरू स्थित नेशनल स्टीच्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज (निमहांस) की ओर से किए गए अध्ययन से भी बुजुर्गों के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर योगाभ्यासों के चमत्कारिक प्रभावों का पता चला है।

अब जानते हैं कि कौन से योगाभ्यास बुजुर्गों की जिंदगी को खुशनुमा बनाने में मददगार हैं। बिहार योग विद्यालय के नियंत्रण वाले योग रिसर्च फाउंडेशन के मुताबिक आहार और जीवनशैली को ठीक रखते हुए कुछ खास तरह के आसन, प्राणायाम, ध्यान और मंत्र जप करने से वृद्ध होने की प्रक्रिया की गति धीमी हो जाती है। वृद्धावस्था की ज्यादातर शारीरिक व मानसिक समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है। आसनों में उत्तान पादासन, पाद संचालनासन व चक्र पासासन; मर्जरि आसन, हस्त उत्थानासन, सिद्धासन या सिद्धयोनि आसन और शंकासन बेहद लाभप्रद होता है। 

प्राणायामों में यौगिक श्वसन, उदर श्वसन, नाड़ी शोधन, भ्रामरी और उज्जायी लाभदायक हैं। मुद्रा और बंधों में हृदय मुद्रा, अश्विनी मुद्रा, शांभवी मुद्रा, खेचरी मुद्रा और मूल बंध का अभ्यास हृदय, श्वसन व मस्तिष्क की कार्यप्रणाली में सुधार लाने, मन को शांत, संतुलित और तीक्ष्ण बनाने और प्राणशक्ति को बढ़ाने और दीर्घआयु प्राप्त करने के लिए उपयोगी है। हृदय मुद्रा हृदय के लिए लाभप्रद है। अश्विनी मुद्रा व मूलबंध प्राण-शक्ति में वृद्धि व मन के कार्य को सुधारने और खेचरी एवं शांभवी मुद्राएं चेतना के विस्तार में सहायक हैं।

ध्यान के अनेक अभ्यासों में योग निद्रा मन के चेतन, अर्धचेतन व अवचेतन इन तीनों स्तरों पर कार्य करती है और उन्हें विश्रांति प्रदान करती है। पुरानी स्मृतियों को पुन उभारने और उन्हें विस्मृत करने तथा योगाभ्यासी को अपने अतीत से अनाशक्त बनाने में अंतर्मौन की बड़ी भूमिका होती है। अभ्यास स्वतंत्र रूप से या अजपा जप के साथ किया जा सकता है। त्राटक मानसिक क्षमताओं को बढाता और मन को अंतर्मुखी बनाने का प्रशिक्षण देता है। भावनाओं के शुद्धिकरण के लिए हृदयाकाश धारणा लाभदायक है। चिदाकाश धारणा चेतना के विस्तार में सहायक है। मंत्र जप शरीर के पांच कोशों – अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय को प्रभावित करता है।

योग रिसर्च फाउंडेशन से जुड़ी बिहार योग विद्यालय की संन्यासी डॉ. स्वामी निर्मलानंद सरस्वती के मुताबिक ये योगाभ्यास चयापचय (Metabolism) दर, श्वसन की दर और ऑक्सीजन की मांग में कमी ला कर शरीर, चेतन मन व अवचेतन मन को विश्रांति पहुंचाते है। साथ ही प्राण के क्षय को रोक कर प्राण-शक्ति के पुनरूत्पादन में सहायता करते हैं। इससे जीवन की गुणवत्ता के साथ ही जीवनकाल बढ जाता  हैं।

इंटरनेशनल जर्नल ऑफ प्रीवेंटिव मेडिसिन, जर्नल ऑफ गेरोंटोलॉजी एंड गेरियाट्रिक रिसर्च, जर्नल ऑफ रिलीजन एंड हेल्थ, अमेरिकन जर्नल ऑफ हेल्थ प्रमोशन, इंडियन जर्नल ऑफ कम्युनिटी मेडिसीन और जर्नल ऑफ पोस्टग्रेजुएट मेडिसीन में बुजुर्गों के मानसिक स्वास्थ्य को दुरूस्त रखने में आध्यात्मिकता के प्रभावों को लेकर कई शोधपरक लेख प्रकाशित हो चुके हैं। सभी अध्ययनों में योग और आध्यात्मिकता को बड़े महत्व का माना गया है। 

इंडियन जर्नल ऑफ कम्युनिटी मेडिसीन के मुताबिक, “भारत में 15 मिलियन बुजुर्ग अकेलापन का दंगा झेल रहे है। इनमें तीन चौथाई तो महिलाएं ही हैं। कुल बुजुर्गों में से लगभग एक तिहाई लोग सामाजिक और अन्य कारणों से अवसाद ग्रस्त हैं।“ ऐसे में योग और अध्यात्म बुजर्गों के लिए कितना जरूरी है, इस बात को आसानी से समझा जा सकता है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और दो दशकों पर योग विज्ञान पर लेखन कर रहे हैं)

 

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